Thursday, 4 August 2016

मुरली तेरा मुरलीधर भाग 11

मुरली तेरा मुरलीधर भाग 11
प्रेम नारायण पंकिल

संश्लेषित जीवन मधुवन को खंड खंड मत कर मधुकर मधुप दृष्टि ही सृष्टि तुम्हारी वह मरुभूमि वही निर्झर
तुम्हें निहार रहा स्नेहिल दृग सर्व सर्वगत नट नागर
टेर रहा आनन्दतरंगा मुरली तेरा मुरलीधर।।51।।

साध न कुछ बस साध यही साधना साध्य सच्चा मधुकर
यह सच्ची चेतना उतर बन जाती है जागृति निर्झर
वह है ही बस वह ही तो है अलि यह प्रेम समाधि भली
टेर रहा अमितानुरागिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।52।।

कोटि कला कर भी निज छाया पकड़ न पायेगा मधुकर
सच्चे पद में ही मिट पातीं सब काया छाया निर्झर
फंस संकल्प विकल्पों में क्यों झेल रहा संसृति पीड़ा
टेर रहा है निर्विकल्पिका मुरली तेरा मुरलीधर।।53।।

गिरि श्रृंगों को तोड़ फोड़ कर भूमि गर्भ मंथन मधुकर
सूर्य चन्द्र तक पहुंच चीर कर नभ में मेघ पटल निर्झर
उषा निशा सब दिशाकाल में मतवाला बन ढूँढ़ उसे
टेर रहा है प्राणप्रमथिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।54।।

विषय अनल में जाने कब से दग्ध हो रहा तू मधुकर
कृष्ण प्रेम आनन्द सुधामय परम रम्य शीतल निर्झर
उसे भूल जग मरुथल में सुख चैन खोजने चले कहाँ
टेर रहा शाश्वतसुखाश्रया मुरली तेरा मुरलीधर।।55।।

मुरली तेरा मुरलीधर भाग 10

मुरली तेरा मुरलीधर भाग 10

-- प्रेम नारायण पंकिल

जाग न जाने कब वह आकर खटका देगा पट मधुकर
सतत सजगता से ही निर्जल होता अहमिति का निर्झर
मूढ़ विस्मरण में निद्रा में मिलन यामिनी दे न बिता
टेर रहा विस्मरणविनाशा मुरली तेरा मुरलीधर।।46।।

क्या स्वाधीन कभीं रह सकता क्षुद्र भोग भोगी मधुकर
क्षणभंगुर वासना बीच बहता न प्रीति का रस निर्झर
भरा भरा भटकता बावरे रिक्त न निज को किया कभीं
टेर रहा रिक्तान्तरालया मुरली तेरा मुरलीधर।।47।।

बड़भागी हो सुन सच्चे का कितना प्यारा स्वर मधुकर
जाते जहाँ वहीं बह जाता गुनगुन गीतों का निर्झर
और मिले कुछ मिले न जग में बस अक्षय धन कृष्ण स्मरण
टेर रहा प्रभुसम्पदालया मुरली तेरा मुरलीधर।।48।।

अहोभाग्य तुमको ज्योतिर्मय करता है दिनमणि मधुकर
नहलाता मनहर रजनी में उसका राकापति निर्झर
धन्य धन्य तुमको प्रियतम का दुलराता तारा मंडल
टेर रहा है विश्वंभरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।49।।

सुमनों की मधु सुरभि धार में तुम्हें बुलाता वह मधुकर
वासंती किसलय में तेरे लिये लहरता रस निर्झर
कली कली प्रति गली गली में रहा पुकार गंधमादन
टेर रहा है सर्वमूर्तिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।50।।