(((( मान कुँवरी जी की भक्ती )))))).एक सेठ की बेटी मान कुँवरी दस वर्ष की अवस्था में विधवा हो गई।.थोड़े ही दिनों के पश्चात् श्री गुसांई जी गुजरात पधारे तो इस मान कुँवरी को ब्रह्म सम्बंध कराया इसके यहां श्री मदन मोहन जी की सेवा पधराई ।.यह श्री ठाकुर जी की सेवा करने लगी । इस बाई ने श्री मदन मोहन जी की जीवन पर्यन्त सेवा की ।.इसने श्री मदन मोहन जी के स्वरूप के अलावा अन्य किसी स्वरूप के दर्शन भी नहीं किए । यह सेवा छोड़कर कभी घर से बाहर भी नहीं गई ।.जैसे श्री मदन मोहन जी है वैसे सभी के यहाँ श्री ठाकुर जी का स्वरूप होगा, यह मन में निश्चय करके रखती थी|.जब मानकुँवरी साठ वर्ष की हुई तो इसके पिता का देवलोक हो गया । अत: वह मनुष्य रखकर सेवा करने लगी ।.एक दिन एक विरक्त वैष्णव उस गाँव में आया। शीतकाल का समय था । मानकुँवरी के घर आकर ठहरा था|.उसने अपने श्री ठाकुर जी की झाँपी मानकुँवरी को दी और स्वयं तालाब पर स्नान करने चला गया ।.मानकुँवरी बाई ने श्री ठाकुर जी को जगाया, उसकी झाँपी में श्री ठाकुर जी बाल कृष्ण जी थे ।.उस बाई ने श्री मदन मोहन जी के अलावा अन्य किसी भी स्वरूप के दर्शन नहीं किये थे ।.वह विचार करने लगी । कि ठण्ड के कारण श्री ठाकुर जी सिकुड़ गए है, ठण्ड बहुत पड़ती है| इस वैष्णव ने श्री ठाकुर जी के लिए ठण्ड का कोई उपचार नहीं रखा है ।.उस बाई के नेत्रों से जल प्रवाहित होने लगा । उसके मन में बहुत ताप हुआ, वह अंगीठी लेकर बैठ गई ।.तेल में अनेक प्रकार की गरम औषध डालकर तेल को गर्म किया और सुहाते - सुहाते तेल से श्री ठाकुर जी के हाथ पैर मींढने लगी ।.उसने समझा श्री ठाकुर जी को बहुत श्रम हुआ है। उसने श्रम के लिए श्री ठाकुर जी से क्षमा याचना की ।.उसकी प्रार्थना सुनकर तथा उसके शुद्धभाव को देखकर श्री बाल कृष्ण भगवान श्री मदन मोहन जी के स्वरूप में हो गए। डोकरी बाई बहुत प्रसन्न हुई ।.डोकरी ने रसोई करके भोग रखा, उस वैष्णव ने आकर दर्शन किए । श्री ठाकुर जी को शीत के उपचार के रूप में रजाई ओढा रखी थी अत: वह वैष्णव समझ ही न सका कि यह कौन से श्री ठाकुर जी हैं.वह वैष्णव वहाँ दस-पन्द्रह दिन रहा । वह जाने लगा तो बाई ने आग्रह किया कि शीत पड़ रही है श्री ठाकुर जी को श्रम होता है अत: शीतकाल यहीं व्यतीत करो । फाल्गुन में चले जाना।.उसने अपने श्री ठाकुर जी की झांपी को सँभाला । श्री बाल कृष्ण केस्थान पर श्री मदन मोहन जी के स्वरूप को देख कर वैष्णव ने मान कुँवरी बाई से झगडा किया,.वह बोला - "तुमने मेरे श्री ठाकुर जी को बदल लिया है ।".मानकुँवरी ने बहुत समझाया । अन्तत: झगडा श्री गोकुल तक पहुँचा । दोनों जने श्री गोकुल में श्री गुसांई जी के समक्ष उपस्थित हुए । श्री गुसांई जी ने दोनों की बातें सुनी ।.श्री गुसांई जी ने झांपी लेकर श्री ठाकुर जी को देखा ।.श्री ठाकुर जी ने श्री गुसांई जी से कहा - "मैं डोकरी के भाव के कारण बाल कृष्ण से मदन मोहन हुआ हूँ ।".इस डोकरी ने मेरे मदन मोहन स्वरूप के अलावा अन्य किसी स्वरूप के दर्शन ही नहीं किए हैं अत: इसके भाव में कोई विक्षेप न हो, मैं श्री मदन मोहन के स्वरूप में अवस्थित हूँ ।.श्री गुसांई जी ने उनका झगडा निपटा दिया| उन्होंने कहा - " ये हीतेरे श्री ठाकुर जी हैं ।".डोकरी ने उससे कहा- " तू श्री ठाकुर जी को ठण्ड में मारता है, ऐसे लोगों को श्री ठाकुर जी पधरा कर नहीं दिये जाने चाहिए।".श्री गुसांई जी डोकरी के शुद्ध भाव को देख कर हँसने लगे ।.वह वैष्णव उस डोकरी के पैरों में पड़ गया। उसने कहा - " मैं अब कहीं नहीं जाऊँगा, तुम्हारे यहाँ टहल करूँगा ।".वह मानकुँवरी बाई श्री यमुना जी का जल पान करके श्री नाथ जी के दर्शन करने गई । श्री नाथ जी के दर्शन करके अपने देश में जाकर श्री ठाकुर जी की सेवा करने लगी ।~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))~~~~~~~~~~~~~
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