💐💐निताई गौर हरि बोल💐💐
क्रमशः से आगे.....
क्रम 5⃣
🌸ब्रज भक्तमाल 🌸
🌿प्रथम खण्ड🌿
🌸श्री बिहारिन देव जू🌸
( कालावधि 1504-1602,)
🌸 चरित्र 🌸
हौ तो और स्वरुप पिछानौ नही, हरिदास बिना हरि को है कहाँ को ।।
🌿स्वामी हरिदास जी महाराज के निकुंज गमन के पश्चात विट्ठल विपुल देव जी अपने गुरु के वियोग में केवल 7 दिन में ही उनके अनुगामी हो गए तब उस नित्य बिहार की उपासना की धुरी को बिहारिन देव जी ने संभाला। स्वामी बिहारिन देव जी ने बहुत वाणियों की रचना की उनके साहित्य को दो भागों में विभाजित किया गया ।
सिद्धांत साहित्य
रस साहित्य
🌿 एक बार आप यमुना स्नान के लिए गए वहां यमुना पुलिन पर दिव्य लीला के दर्शन करते हुए अपने देह सुध को भूल कर निज सखी स्वरूप में, प्रिया लाल जी को पद गा कर सुनाने लगे-
" विहरत लाल- बिहारिन दोऊ श्री यमुना के तीरै -तीरै…....."
🌿इस तुक को गाते हुए ही आपको निराहार जमुना तट पर तीन दिन व्यतीत हो गए और इधर निधिवन राज में विराजमान बिहारी जी की सेवा ही नहीं हुई। ऐसी लीलाओं में निरंतर डूबे रहते थे। तब सेवा में व्यवधान जानकर बिहारी जी की सेवा अन्य को प्रदान की।
🌿तब बिहारी जी की सेवा भली-भांति होने लगी श्री बिहारिन देव जी ने वृंदावन रस का अनुपम वर्णन किया है।
🌿एक बार सुहावनी शरद ऋतु का समय था निधिवन का सौंदर्य सीमा को तोड़ रहा था। नित्य केलि रस के मत मधुप श्री बिहारिन देवजी नेत्र मूंदकर प्रिया प्रीतम की कुंज क्रीडा के अवलोकन में निमग्न हो रहे थे। उसी समय अपने सखाओं के साथ खेलते हुए त्रिभुवन मोहन श्याम सुंदर वहां आ पहुंचे। सभी स्खाओं ने स्वामी बिहारिन देव जी को इस प्रकार नयन बंद किए देखा तो उनका कोतूहल जागृत हो उठा। श्री कृष्ण से पूछा ही बैठे -
" अरे कन्हैया ! देख तो वु कौन बाबाजी आंख मीच के बैठयौ ऐ?"
🌿 श्याम सुंदर ने उन्हें कोई प्रोत्साहन न देते हुए कहा- " रहन दे, तोय का परी। " अपनौ भजन करन दै। अब तो सारे सखा मिलकर पीछे ही पड़ गये-
" नायँ भैया ! नैक चल तो सई । जाते कछु बातचीत करिगे ।"
🌿 सखाओं के हठ के आगे भला नंदनंदन की क्या चलती ? उन्हें स्वामी बिहारिन देव जी के पास आना ही पड़ा । आकर आवाज लगायी- " ओ बाबा! नैक आँख तो खोल ।" दो तीन आवाजों का तो कुछ पता ही नहीं चला, जब सब ने मिलकर जोर से पुकारा तो आपका ध्यान इधर आकर्षित हुआ । पर नेत्र बंद किए ही बोले- " कौन हो? क्या बात है भाई ?
🌿श्री नंदनंदन बोले - " मैं बुई हूं, जाय सब लोग, माखन चोर, चितचोर, गोपीजन वल्लभ कहै हैं। " स्वामी बिहारिन देव जी बोले - "तो तिहारे संग हमारे स्वामी जी हु है का ?" श्यामसुंदर बोले - " बु तो है नाय पर सबरे सखा मेरे संग हैं।" स्वामी बिहारिन देव जी बोले - " तो आप जिनके चित वित् को ब्रज में नित हरण करौ तहाँई जाऔ । हम तो श्री हरिदासी के अंक में विराजवे वारे। जुगल के रस के अनन्य है। वाके बिना हम काहूँ को नाय देखै । इन्है ही जानै।
🌿श्री स्वामी बिहारिन देव जी लगभग 98 वर्ष की आयु में नित्य निकुंज - क्रीड़ा का आनंद लेते हुए स्वामी जी महाराज के नित्य सानिध्य को प्राप्त किया। संप्रदाय में इनको श्री जी का स्वरुप बताते हैं। जिस प्रकार स्वामी जी ने श्यामा श्याम को लाड लगाया श्यामा जू को प्रधान मान कर । उसी प्रकार स्वामी जी को लाड लड़ाने के लिए श्रीजी स्वयं श्री बिहारिन देव के रूप में प्रकट हुई और लाड लडाया।
👉 श्री बिहारिन देव जी का चरित्र यही विश्राम लेता है 🙏आगामी अंक छः में हम श्री कृष्णदास् कविराज् जी के चरित्र का गुणगान करेंगे
क्रमशः....
✍🏻प्रस्तुति: नेह किंकरी नीरू अरोड़ा
📚 स्रोत : ब्रज भक्तमाल
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